★ एक लेख और एक पत्र – भगत सिंह
प्रश्न- भगत सिंह के अनुसार केवल कष्ट सहकर ही देश की सेवा की जा सकती है। उनके जीवन के आधार पर इसे प्रमाणित करें।
उत्तर: भगत सिंह के ‘एक लेख और एक पत्र’ के अनुसार देश-सेवा का पथ दहकते अंगारों का पथ है, जहां फूलों की सेज नहीं, विणा की झंकार नहीं अपितु खड्ग की चमक होती है। देश-सेवा में घर-परिवार का त्याग करना पड़ता है, सगे-संबंधियों को भूल जाना पड़ता है। आजादी के दीवानों को, जो क्रांति का सहारा ले चुके हैं पग-पग पर कठिनाइयों, यातनाओं का सामना करना पड़ता हैभगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, खुदीराम बोस, बटुकेश्वर, योगेन्द्र शुक्ल आदि क्रांतिकारी देश-सेवकों का जीवन अत्यंत ही कष्टमय था।
गाँधी जी, लोकमान्य तिलक, नेहरू, जेपी की देश-सेवा भलाई नहीं जा सकती, और न उनके कष्टों को हम भूल सकते हैं। 14 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में करने लगे थे। भारतीय स्तर पर क्रांतिकारी दल का गठन करने का श्रेय भगत सिंह को ही है। 1928 में सांडर्स हत्याकांड के वे प्रमुख पुरोधा थे। हमारे स्वाधीनता- आंदोलन का बहुत बड़ा श्रेय इन्हें ही दिया जाता है। स्वतंत्र-संग्राम को गतिशील करने में इनका जो श्रेय है, वह अभी भी देश के लिए प्रेरणा-स्रोत है।
प्रश्न- भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को सुंदर कहा है? वे आत्महत्या को कायरता कहते हैं। इस संबंध में उनके विचारों को स्पष्ट करें। अथवा, भगत सिंह सिंह ने कैसी मृत्यु को सुंदर कहा है।
उत्तर: भगत सिंह ने ‘सुखदेव के नाम पत्र’ में स्पष्ट किया है कि आत्महत्या किसी भी परिस्थिति में उचित नहीं बल्कि वह एक जघन्य अपराध है। यह कायरता है, परिस्थितिजन्य विसंगति या असफलता से त्रस्त होकर आत्महत्या कर लेना व्यक्ति की सबसे बड़ी पराजय है। क्रांतिकारी सामान्य व्यक्ति नहीं होता।
कोई भी मनुष्य आत्महत्या को उचित नहीं मानता, क्रांतिकारी को तो इस विषय में कुछ सोंचना भी नहीं चाहिए। भगत सिंह ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति के क्रम में यह स्पष्ट किया है कि हममें से जिन लोगों को विश्वास है कि उन्हें फाँसी दी जाएगी, उन्हें अपनी फाँसी के दिन की प्रतीक्षा करनी चाहिए। यह फाँसी मृत्यु से भी सुंदर होगी। कुछ दुःखों से बचने के लिए आत्महत्या करना, एक कायरता है।
प्रश्न- भगत सिंह ने अपनी फाँसी के लिए किस मनुष्य की इच्छा व्यक्त की है?
उत्तर: भगत सिंह को इच्छा थी कि जब भारतीय स्वाधीनता आंदोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँचे तब उन्हें फाँसी दी जाय।
★ ओ सदानीरा- जगदीशचन्द्र माथुर
प्रश्न- गंगा पर पल बनाने में अंग्रेजों ने क्यों दिलचस्पी नहीं ली?
उत्तर: दक्षिण बिहार के बागी विचारों का असर चम्पारण में देर से पहुँचा इसलिए गंगा पर पुल बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखायी।
प्रश्न- गांधी जी के शिक्षा संबंधी आदर्श क्या थे?
उत्तर: गाँधीजी की दृष्टि में अक्षर ज्ञान की इस उद्देश्य प्राप्ति का एक साधन मात्र है। जो बच्चे जीविका के लिए नये साधन सीखने के इच्छुक हैं उनके लिए औधोगिक शिक्षा की व्यवस्था करने का गाँधीजी ने निर्णय किया। गाँधीजी का विचार था कि शिक्षा प्राप्त करने के बाद बच्चे अपने वंशगत व्यवसायों में लग जाएँ। तथा स्कूल में प्राप्त शिक्षा के साथ ही जीवन को परिष्कृत करें।
वे ब्रिटिश सरकार की शिक्षा पद्धति को अनुपयुक्त एवं खौफनाक समझते थे तथा उसे हेय मानते थे। उनके अनुसार छोटे बच्चों के चरित्र और बुद्धि का विकास करने की बजाय यह पद्धति उन्हें बौना बना देती है। उनका मुख्य उद्देश्य यह था कि बच्चे ऐसे पुरुष और महिलाओं के संपर्क में आएँ जो सुसंस्कृत और निष्कलुष चरित्र के हों।
प्रश्न- पुंडलीकजी कौन थे?
उत्तर: पुंडलीकजी भितिहरवा आश्रम विद्यालय के शिक्षक थे। लेखक की मुलाकात पुंडलीकजी से भितिहरवा आश्रम में हुई। जहाँ उन्होंने एक घटना का वर्णन किया जा