★ बातचीत-बालकृष्ण भट्ट
प्रश्न- बातचीत की कला अर्थात ‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ क्या है?
उत्तर: प्रस्तुत निबंध में वाक्यशक्ति की महत्ता था ‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ के आकर्षक शक्ति को प्रतिबिंबित किया या है। यूरोप के लोगों का ‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ जगत प्रसिद्ध है। ‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ का अर्थ है- वार्तालाप की कला। ‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ के हुनर की बराबरी स्पीच और लेख दोनों नहीं कर पाते।
इस हुनर की पूर्ण शोभा काव्यकला प्रवीण विद्वतमंडली में है। इस कला के माहिर व्यक्ति ऐसे चतुराई से प्रसंग छोड़ते हैं कि श्रेताओं के लिए बातचीत कर्णीप्रिय तथा अत्यन्त सुखदायी होते हैं। सुहृद गोष्ठी इसी का नाम है। सुहृद गोष्ठी की विशेषता है कि वक्ता के वाक्चातुर्य का अभिमान या कटप कहीं प्रकट नहीं हो पाता तथा बातचीत की सरसता बनी रहती है।
प्रश्न- बातचीत के संबंध में बेन जॉनसन और एडीसन के क्या विचार हैं?
उत्तर: मनुष्य की गुण-दोष प्रकट करने के लिए बातचीत आवयश्यक है। बेन जॉनसन के अनुसार, “बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार होता है, जो सर्वथा उचित है।” एडीसन के मतानुसार- “असल बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों में हो सकती है, जिसका तात्पर्य यह हुआ कि जब दो आदमी होते हैं तभी अपना एक-दूसरे के सामने दिल खोलते हैं।
तीसरे की उपस्थिति मात्र से ही बातचीत की धारा बदल जाती है।” तीन व्यक्तियों के बातचीत की मनोवृत्ति के प्रसरण की वह धारा बन जाती है मानो उस त्रिकोण की तीन रेखाएँ हैं। बातचीत में जब चार व्यक्ति लग जाते हैं तो ‘बेतकल्लुफी’ का स्थान ‘फॉरमैलिटी’ ले लेती है।
प्रश्न- अगर हममें वाक्यशक्ति ना होती, तो क्या होता?
उत्तर: ईश्वर द्वारा प्रदत्त शक्तियों में वाक्यशक्ति मनुष्य के लिए वरदान है। वाक्यशक्ति के अनेक फायदों में ‘स्पीच’, वक्तृता और बातचीत दोनों का समावेश होता है। वाक्यशक्ति के अभाव में सृष्टि गूंगी रहती। वाक्यशक्ति के अभाव में मनुष्य सुख-दुख का अभाव अन्य इंद्रियों के द्वारा करता है और सबसे विकट स्थिति तो आपस में संवादहीनता की स्थिति होती। बातचीत जहाँ दो आदमी का प्रेमपूर्वक संलाप है, वाक्यशक्ति के अभाव में चुटीली व्यंग्यात्मक बात कहकर तालियां बटोरना भी संभव नहीं होता।
प्रश्न- राम-रामौवल का क्या अर्थ है?
उत्तर: (केवल बातें करना)- दो से अधिक लोगों के बीच बातचीत केवल राम-रामौवल कहलाती है।
★ उसने कहा था – चन्द्रधर शर्मा गुलेरी
प्रश्न- ‘उसने कहा था’ कहानी पहली बार कब प्रकाशित हुई थी?
उत्तर: ‘उसने कहा था’ कहानी पहली बार 1915 में प्रकाशित हुई थी।
प्रश्न- ‘उसने कहा था’ कहानी का प्रारंभ कहाँ और किस रूप में होता है?
उत्तर: ‘उसने कहा था’ कहानीकार चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की अमर कथा-रचना है। यही वह कालजयी रचना है, जिससे आधुनिक हिन्दी कहानी का आरंभ होने मान्य है। इस कहानी का प्रारंभ अमृतसर के भर भरे बाजार से होता है, जहाँ बम्बू काँटे-वालों के बीच से होकर बारह वर्षीय एक लड़का (लहना सिंह) आठ वर्षीय एक लड़की को ताँगे के नीचे आने से बचाता है। दोनों सिक्ख हैं।
लड़का लड़की से पूछता है- ‘तेरी कुड़माई (मंगनी) हो गई है, यह सुनकर लड़की ‘धत्त’ कहकर भाग जाती है। वही लड़की बाद में धत्त कहकर भागने के बजाय यह कहती है कि, ‘हाँ, कल हो गई। देखते नहीं- यह रेशम के फूलों वाला सालू? यह सुनकर लड़का हतप्रभ रह जाता है। इस प्रकार लड़का अपने हृदय में लड़की के प्रति उत्तपन्न प्रेम को सहेजे रहता है।
प्रश्न- “कहानी है तुम राजा हो मेरे मुल्क को बचाने आए हो।” वजीरा के इस कथन में किसकी ओर संकेत है?
उत्तर: यह कथन इंग्लैंड की महिला (फिरंगी मेम) ने कहा था। फिरंगी मेम से ब्रिटेन, फ्रांस आदि की ओर संकेत है।
प्रश्न- लहनासिंह कौन था?
उत्तर: लहनासिंह ‘उसने कहा था’ का नायक है। लहनासिंह जर्मनी की लड़ाई में लड़ने जाने वाले नम्बर 77 लिख राइफल्स में जमादार है।
प्रश्न- सूबेदार और उसका लड़का लड़ाई में क्यों गये?
उत्तर: सूबेदार और उसका लड़का जर्मनी सैनिको के विरुद्ध लड़ने गए थे।
★ संपूर्ण क्रांति – जयप्रकाश नारायण
प्रश्न- जयप्रकाश नारायण की पत्नी का क्या नाम था? वह किसकी पुत्री थी?
उत्तर: जयप्रकाश नारायण की पत्नी का नाम प्रभावती देवी था। वे प्रसिद्ध गाँधीवादी ब्रजकिशोर प्रसाद की पुत्री थी।
प्रश्न- दलविहीन लोकतंत्र और साम्यवाद में कैसा संबंध है?
उत्तर: जयप्रकाश जी के अनुसार दलविहीन लोकतंत्र मार्क्सवाद और लेनिनवाद के मूल उद्देश्यों में है। मार्क्सवाद के अनुसार समाज जैसे-जैसे सामान्यवाद की ओर बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे राज्य-स्टेट का क्षय होता जायेगा और अंत में के स्टेटलेस सोसाइटी (राज्यविहीन समाज) कायम होगा। वह समाज अवश्य ही लोकतांत्रिक होगा, बल्कि उसी समाज में लोकतंत्र का सच्चा स्वरूप प्रकट होगा और वह लोकतंत्र निश्चय ही दलविहीन होगा।
प्रश्न- बापू और नेहरू की किस विशेषता का उल्लेख जे० पी० ने अपने भाषण में किया है?
उत्तर: जे० पी० ने अपने भाषण में बापू एवं नेहरूजी की विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। बापू की महानता के बारे में जयप्रकाश कहते हैं कि जब भी हमने यह कहा- बापू हम नहीं मानते हैं आपकी यह बात, तो बापू बुरा नहीं मानते थे। वे हमारी बात समझ जाते थे। फिर भी वो हमें प्रेम से समझाना चाहते थे।
जेपी कहते हैं कि जवाहरलाल मुझे बहुत मानते थे। मैं उनका बड़ा आदर करता था, परन्तु उनकी कटु आलोचना भी करता था। उनमें बड़प्पन था। वे हमारी आलोचनाओं का बुरा नहीं मानते थे। मेरा उनके साथ जो मतभेद था वह परराष्ट्र की नीतियों को लेकर था।
प्रश्न- भ्रष्टाचार की जड़ क्या है? इसे दूर करने के लिए क्या सुझाव देंगे?
उत्तर: आजादी के बाद जो स्वराज मिला उससे जेपी खुश नहीं थे। आजादी के बाद भी भ्रष्टाचार की जड़े और मजबूत हुई हैं। बगैर घुस या रिश्वत दिये जनता का कोई कार्य नहीं होता। शिक्षा संस्थाएँ भी भ्रष्ट हो गई हैं। भ्रष्टाचार संबंधी जेपी के विचार उचित है। भ्रष्टाचार को जड़ मूल से नष्ट करने हेतु व्यवस्था में परिवर्तन लाना होगा।
किरानी राज खत्म करना होगा। नौकरशाही को जड़-मूल से नष्ट करना होगा। आज के नौकरशाह अभी भी अपने को जनता का सेवक नहीं समझते। वे अपने को सरकारी कर्मचारी मानते हैं। जो गुलामी के समय उनकी सोंच थी वही सोंच आज भी वर्तमान है। नौकरशाहों को जनता का सेवक समझना होगा तभी भ्रष्टाचार को दूर किया जा सकता है।
★ अर्धनारीश्वर- रामधारी सिंह ‘दिनकर’
प्रश्न- स्त्रियोचित गुण क्या है?
उत्तर: दया, माया, सहिष्णुता और भीरुता- ये स्त्रियोचित गुण कहे जाते हैं।
प्रश्न- पुरुष जब नारी के गुण लेता है तब वह क्या बन जाता है?
उत्तर: पुरुष जब नारी के गुण अपना ले तो उसकी मर्यादा हीन नहीं होती, बल्कि उसके पूर्णता में वृद्धि ही होती है। पुरुष अगर नारी की कोमलता, दया, सरलता जैसे गुण अपने में ले आये तो उसके जीवन में पूर्णता का बोध होता है।
प्रश्न- अर्धनारीश्वर की कल्पना क्यों कि गई होगी?
उत्तर: अर्धनारीश्वर शंकर और पार्वती का काल्पनिक रूप है, जिसका आधा अंग पुरुष का और आधा अंग नारी का होता है। एक ही मूर्ति के दो आँखें, एक रसमयी और दूसरी विकराल, एक ही मूर्ति के दो भुजाएँ- एक त्रिशूल उठाये और दूसरी की पहुंची पर चूड़ियाँ एवं एक ही मूर्ति के दो पाँव, एक जरीदार साड़ी से आवृत और दूसरा बाघम्बर से ढका हुआ, एक कल्पना निश्चय ही शिव और शक्ति के बीच पूर्व समन्वय दिखाने को की गई होगी।
प्रश्न- नारी की पराधीनता कब से प्रारंभ हुई?
उत्तर: नारी की पराधीनता तब आरंभ हुई जब मानव जाति ने कृषि का आविष्कार किया। इसके चलते नारी घर में और पुरुष बाहर रहने लगा। यहाँ से ज़िंदगी दो टुकड़ों में बँट गई। नारी पराधीन हो गई। इस पराधीनता ने नर-नारी से वह सहज दृष्टि भी छीन ली जो नर-मादा पक्षियों में थी। इस पराधीनता के कारण नारी के सामने अस्तित्व का संकट आ गया। उसके सुख और दुख, प्रतिष्ठा और अपमान, यहाँ तक कि जीवन और मरण पुरुष की मर्जी पर टिकने लगा।
प्रश्न- ‘यदि संधि की वार्त्ता कुंती और गांधारी के बीच हुई होती, तो बहुत संभव था कि महाभारत न मचता।’
उत्तर: यदि संधि की वार्त्ता कृष्ण और दुर्योधन के बीच न होकर कुंती और गांधारी के बीच हुई होती, तो बहुत संभव था कि महाभारत नहीं होता। नारियों में इस भावना की फिक्र होने की संभावना प्रबल होती है कि दूसरी नारियों का सुहाग उसी प्रकार कायम रहे जैसा वे अपने बारे में सोंचती है। ऐसा इसलिए कि नारियाँ पुरुषों की तुलना में कम कर्कश एवं कठोर हुआ करती है। कुंती एवं गांधारी दोनों अपने-अपने पुत्रों को राजा बनते देखना चाहती थीं, लेकिन इतना तय है कि इसके लिए इतना बड़ा रक्तसंहार वे कदापि स्वीकार नहीं करतीं।
★ रोज- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
प्रश्न- मालती के घर का वातावरण कैसा है? अथवा, मालती के चरित्र का मनोवैज्ञानिक उदघाट्न प्रस्तुत करें। अथवा, ‘रोज’ कहानी में मालती को देखकर लेखक ने क्या सोचा?
उत्तर: वातावरण, परिस्थिति और उसके प्रभाव में ढलते हुए एक गृहिणी के चरित्र का मनोवैज्ञानिक उदघाट्न अत्यंत कलात्मक रीति से लेखक यहाँ प्रस्तुत करता है। डॉक्टर पति के काम पर चले जाने के बाद सारा दिन मालती को घर में एकाकी काटना होता है। उसका दुर्बल, बीमार और चिड़चिड़ा पुत्र हमेशा सोता रहता है या रोता रहता है।
मालती उसकी देखभाल करती हुई सुबह से रात ग्यारह बजे तक के घर के कार्यों में अपने को व्यस्त रखती है। उसका जीवन ऊब और उदासी के बीच यंत्रवत चल रहा है। किसी तरह के मनोविनोद, उल्लास उसके जीवन में नहीं रह गए हैं जैसे वह अपने जीवन का भार ढोने में ही घुल रही हो।
प्रश्न- गैंग्रीन क्या है?
उत्तर: गैंग्रीन एक खतरनाक रोग है। यह रोग काँटा के चुभने पर उसे नहीं निकालने के कारण नासूर बन जाता है जो ऑपरेशन कराने के बाद ही ठीक हो पाता है। काँटा अधिक दिन तक शरीर में रह जाने के कारण विषाक्त प्रभाव शरीर पर छोड़ता है जो गैंग्रीन का रूप धारण कर लेता है और उससे प्रभावित अंग काटना पड़ता है। कभी-कभी तो इस रोग से पीड़ित रोगी की मृत्यु तक हो जाती है।
प्रश्न- मालती के पति महेश्वर की छवि उद्घाटित करें।
उत्तर: महेश्वर किसी पहाड़ी कस्बे में एक सरकारी डिस्पेंशरी में डॉक्टर है। रोज डिस्पेंशरी जाना, मरीजों को देखना, गैंग्रीन का ऑपरेशन करना, थका-मादा घर लौटना, यही महेश्वर की दिनचर्या है।
महेश्वर हर तीसरे-चौथे दिन एक गैंग्रीन का ऑपरेशन करता है। किन्तु अपने घर में वही गैंग्रीन, वही एकरसता मुहँ फैलाये उपस्थित है, जिसका हम कुछ नहीं बिगाड़ पाते। इस विरोधाभास और एकरसता को कहानी के भीतर संरचनात्मक स्तर पर बड़ी आत्मीयता और सहज अनुभूति से प्रतीकों, बिम्बों, परिवेशों और फ्लैश बैक के माध्यम से लेखन द्वारा व्यक्त किया गया है।