• पुरातत्व क्या है?
पुरातत्व ऐतिहासिक स्रोत होता है। उत्खनन ( खुदाई ) से प्राप्त सभी सामग्रियों को पुरातत्व कहा जाता है। इसमें मूर्तियों, शिलालेख, अस्ती अवशेष, मिट्टी के बर्तन, सिक्के, पाषाण उपकरण आदि आते हैं। ये सभी चीजें जिस कालखंड ( युग, समय ) की होती है उस कालखंड की प्राथमिक ( शुरू का ) ऐतिहासिक स्रोत मानी जाती है।
• हड़प्पा सभ्यता की विस्तार रूप क्या है?
हड़प्पा सभ्यता का उदय भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर – पश्चिम भाग में हुआ था। रंगनाथ राव महोदय के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम तक 1600 किमी° एवं उत्तर से दक्षिण तक 1100 किमी° है। यह सभ्यता उत्तर में कश्मीर के मांडा जिले से लेकर
दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक और पश्चिम बलूचिस्तान के मकरान तट से उत्तर – पूर्व में मेरठ तक फैली हुई है। इसका क्षेत्रफल त्रिभुजाकार है और लगभग 1, 299, 600 वर्ग किलमीटर में फैला है जो निश्चय ही पाकिस्तान अथवा प्राचीन मिस्त्र या मेसोपोटामिया से बड़ा है।
अब तक इस सभ्यता के लगभग 1000 स्थलों का पता चला है जिनमें नगरों की संख्या केवल छ: है। इनमें हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सबसे महत्वपूर्ण नगर थे। अन्य नगरों में चन्हूदड़ो, लोथल, कलीबंगन और बनवाली है। इस सभ्यता के अवशेष गुजरात राज्य में रंगपुर तथा रोजदी में भी मिले हैं।
• हड़प्पावासियों द्वारा व्यवहृत सिंचाई के साधनों के बारे में –
आज सिंधु प्रदेश इतना उपजाऊ नहीं है, किन्तु प्राचीन समय में यह एक उपजाऊ प्रदेश था। आज कल यहां केवल 15 सेमी° वर्षा होती है, परंतु सिकंदर महान के समय एक इतिहासकार का कहना था कि चौथी सताब्दी ई° पू° सिन्धु देश एक उपजाऊ प्रदेश था।
प्राचीन काल में सिन्धु प्रदेश में वनस्पति प्रचुर मात्रा में थी जो वर्षा को आकर्षित करती थी। यहां भवन निर्माण तथा इटें पकाने के लिए काफ़ी लकड़ी उपलब्ध होती थी, परंतु कालांतर में कृषि विस्तार, बड़े पैमाने पर रचाई तथा ईंधन के प्राप्ति के कारण प्राकृतिक वनस्पति नष्ट हो गई।
उन दिनों सिन्धु में प्रतिवर्ष बाढ़ आती थी जो अपने साथ इतनी अधिक जलोढ़ मिट्टी लती थी जितनी की मिस्त्र में नील नदी भी नहीं लाती थी। जिस प्रकार नील नदी मिस्त्र का वरदान समझा जाता था उसी प्रकार उन दिनों सिन्धु नदी को सिन्धु प्रदेश का वरदान समझा जाता था।
लोग बाढ़ के मैदानों में गेहूं तथा जौ बो देते थे और अगले वर्ष की बाढ़ से पहले अप्रैल मास में उसे काट लेते थे। उस समय नहरें नहीं थीं, किन्तु बलूचिस्तान तथा अफगानिस्तान से नालों के अवशेष मिले हैं।
संभवत : नदी का पानी नालों के माध्यम से खेतों में सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता था। कुल मिलाकर हड़प्पावासी सिंचाई के लिए पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर थे।
• हड़प्पा व्यापार की समीक्षा करें।
हड़प्पा के अन्य देशों के साथ व्यापारिक संबंध थे। हड़प्पा के लोग अरब प्रायद्वीप में ओमान से तांबा आयात करते थे। ओमान में एक जगह पर हड़प्पा में बना हुआ बर्तन मिला है। ऐसा लगता है कि हड़प्पा के लोग इन बर्तनों के बदले ओमान से तांबा लाते थे।
खुदाईयों से मिलने वाली चीज़े जैसे कि मोहरें, तौल के बाट, पासे और मनकों से भी सिद्ध होता है कि हड़प्पा के लोगों के संबंध दूर – दूर के देशों से था। हड़प्पा और ओमान, बहरीन और मेसोपोटामिया के साथ समुद्री रास्ते द्वारा संबंध थे। हड़प्पा सभ्यता के लोग आंतरिक व्यापार भी करते थे। चन्हूदड़ो तथा लोथल में बने हुए मनके, मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा जैसे नगरों को भेजे जाते थे।
• पूर्व हड़प्पा संस्कृति से आप क्या समझते हैं?
1950 ई° के पश्चात् कुछ स्थानों पर हुए उत्खनन से ज्ञात हुआ है कि हड़प्पा-संस्कृति से पहले भी एक संस्कृति अस्तित्व में रह चुकी थी। विद्वानों द्वारा इन नवीन सभ्यता को पूर्व-हड़प्पा संस्कृति का नाम दिया गया है। इस नवीन खोज के बाद सिन्धु सभ्यता या हड़प्पा संस्कृति को
परिष्कृत हड़प्पा संस्कृति की संज्ञा दी गई है। इन नवीन पर्व हड़प्पा संस्कृति की खोज से यह प्रमाणित हुआ कि सिन्धु सभ्यता का विकास अचानक या पृथक रूप से नहीं हुआ था बल्कि यह उस संस्कृति का संभवतः विकसित रूप है जिसे पर्व हड़प्पा संस्कृति कहा गया है।
• मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार के विषय में।
मोहनजोदड़ो में विशाल स्नानागार ईटों के स्थापत्य का सुंदर नमूना है। यह स्नानागार 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.45 मीटर गहरा है। दोनों सिरों पर हौज की सतह तक सीढ़ियां बनी हुई है। इसके चारों तरफ छोटे – छोटे कमरे बने हुए हैं। इस स्नानागार का प्रयोग आनुष्ठानिक स्थान के लिए होता था। यह एक सार्वजनिक स्नानागार था।
• मोहनजोदड़ो के अन्नागार के विषय में।
मोहनजोदड़ो में विशाल अन्नागार के भी साक्ष्य मिले हैं। ये अन्नागार छः – छः कमरों के दो कतारों में मिले हैं। इन अन्नागार के बाहर चबूतरे भी मिले हैं जहां अनाजों को सिखाया भी जाता था। इन अन्नागारों में किसानों से करके रूप में जिसके रूप में अनाज प्राप्त कर उसे रखा जाता था। फसलों की बर्बादी या उत्पादक कम होने पर नगर के लोगों में यहां के अनाज वितरण किया जाता होगा।
• सिन्धुघाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है?
सिन्धुघाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता इसलिए कहा जाता है क्योंकि हड़प्पा नामक स्थान पर ही सर्वप्रथम 1922 ई° में राखल दास बनर्जी ने उत्खनन करवाया और नगर सभ्यता को प्रकाश में लाया। इसके बाद ही अन्य स्थानों पर पुरातात्विक खुदाई की गई। सिन्धुघाटी सभ्यता का सबसे महत्वपूर्ण नगर होने तथा हड़प्पा में ही इस सभ्यता का उत्खनन हुआ इसके चलते ही इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है।
मतलब : सिन्धुघाटी सभ्यता को ही हड़प्पा सभ्यता कहा जाता है, या हड़प्पा सभ्यता को ही सिन्धुघाटी सभ्यता कहा जाता है।
• सिन्धु सभ्यता की कला का वर्णन।
सिन्धु सभ्यता पक्की मिट्टी की बनी हुई अनेकों मुहरें – मुद्रायें प्राप्त हुई हैं, जिनसे इनकी कलात्मक स्वरूप के विषय में जाना जा सकता है। इसके साथ ही मिट्टी और धातु की अनेक लघु मूर्तियां भी प्राप्त हुई हैं जिनसे तत्कालीन कला पर यथोचित प्रकाश पड़ता है।
मोहरे — हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन स्थल से पकी हुई मिट्टी की अनेकों मुद्रायें प्राप्त हुई हैं। इन पर विभिन्न पशुओं, वृक्ष और मानव आकृतियों का अंकन किया गया है।
भवन निर्माण कला — इस कला के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में प्राप्त हुए हैं। इनके वास्तुकला उच्च कोटि की थी।
मूर्तिकला — मोहरों पर मूर्तियों की कला अत्यंत उच्च कोटि की है। कुबड़ वाले बैल का चित्रण अत्यन्त यथार्थ और प्रभावशाली है। मानव मूर्तियों के निर्माण में हड़प्पा संस्कृति के लोगों ने दक्षता प्राप्त कर लिए थे। नर्तकी की कांसे की मूर्ति की भाव भंगिमा अत्यन्त ही आकषर्क हैं उसे नृत्य मुद्रा में बनाया गया है।
• सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन के बारे में।
हड़प्पा सभ्यता के सामाजिक अवस्था का अनुमान उत्खनन में प्राप्त सामग्री के आधार पर किया जा सकता है। उत्खनन में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की मूर्तियां अधिक पाई गई हैं। इस आधार पर हड़प्पाकालीन समाज को मातृ प्रधान समाज कहा जाता है।
भवन निर्माण योजना से ज्ञात होता है कि परिवार पृथक – पृथक निवास करते थे। हड़प्पा के लोग शांतिप्रिय थे। समाज चार वर्गों शिक्षित वर्ग, व्यवसयी वर्ग, श्रमिक एवं कृषक में विभाजित था।
• सिन्धुघाटी सभ्यता के नगर योजना का वर्णन।
हड़प्पा सभ्यता एक शहरी सभ्यता थी, क्योंकि यहां से एक नियोजित शहर के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जो तत्कालीन विश्व में कहीं नहीं थी। पूरा हड़प्पा नगर स्थल दो भागों में ऊपरी और नीचली नगर क्षेत्र में बंटा हुआ था।
ऊपरी अथवा गढ़ी के क्षेत्र में प्रशासकीय भवन के अवशेष मिले हैं और निचला नगर क्षेत्र में आवासीय भवन के अवशेष मिले हैं। हड़प्पा नगर स्थल पर मिले सड़कों; गलियों, आवासीय भवन, नालियों, स्नानागार, अन्नागार आदि के अवशेषों ने एक आधुनिक नगर की ओर ईशारा करती है।
• भारत के प्राचीन इतहास को जानने के लिए सिक्कों के महत्व।
अभिलेखों की भांति मुद्राएं भी इतिहास के विश्वसनीय और निर्णायक निर्णायक स्रोत है। भारत के विभन्न भागों में सहस्त्रों मुद्राएं प्राप्त हुई हैं। ये मुद्राएं विभिन्न धातुओं की बनाई जाती थीं, जैसे — सोना, चांदी, तांबा तथा मिश्रित धातुएं। अभिलेखों के समान मुद्राएं भी स्थायी, अपरिवर्तनशील और प्रामाणिक स्रोत हैं।
उनसे तिथि निर्धारण में सहायता मिलती है। प्राचीन भारत के गणराज्यों, जैसे — मालव, यौधेय आदि के इतिहास पर मुद्राओं द्वारा प्रचुर प्रकाश पड़ता है। सिक्कों की प्राप्ति से राज्य का क्षेत्र तथा सीमा संबंधी जानकारी होती है। अनेक राजाओं का अस्तित्व केवल मुद्राओं से ही प्रमाणित होता है। अतः प्राचीन भारत के इतिहास को जानने के लिए मुद्राओं का अध्ययन अति आवश्यक है।